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Thursday, 19 April 2012

मुझे पिला के ज़रा-सा क्या - एस ऍम फरीद "भारती"

मुझे पिला के ज़रा-सा क्या गया कोई
मेरे नसीब को आकर जगा गया कोई

मेरे क़रीब से होकर गुज़र गई दुनिया

उदासी के समंदर को छुपाकर - एस ऍम फरीद "भारती"

उदासी के समंदर को छुपाकर मन में रख लेना
किसी की बद्दुआओं को दुआ के धन में रख लेना

हज़ारों लोग मिलते हैं मगर क्या फ़र्क पड़ता है

मुद्दत के बाद मोम की मूरत- एस ऍम फरीद "भारती"

मुद्दत के बाद मोम की मूरत में ढल गया
 मेरी वफ़ा की आँच में पत्थर पिघल गया

उसका सरापा हुस्न जो देखा तो यों लगा

तुम जो साथ हमारे होते - एस ऍम फरीद "भारती"

तुम जो साथ हमारे होते
कितने हाथ हमारे होते
दूर पहुँच से होते जो भी
बिल्कुल पास हमारे होते

पेड़ की छाँव में, बैठे-बैठे सो - एस ऍम फरीद "भारती"

पेड़ की छाँव में, बैठे-बैठे सो गए
तुमने मुसकुरा कर देखा, हम तेरे हो गए

तमन्ना जागी दिल में, तुम्हें पाने की

कहने को तो हम, खुश अब - एस ऍम फरीद "भारती"

कहने को तो हम, खुश अब भी हैं
हम तुम्हारे तब भी थे, हम तुम्हारे अब भी हैं

रूठने-मनाने के इस खेल में, हार गए हैं हम
हम तो रूठे तब ही थे, आप तो रूठे अब भी हैं