तुम जो साथ हमारे होते
कितने हाथ हमारे होते
दूर पहुँच से होते जो भी
बिल्कुल पास हमारे होते
माफ़ सज़ाएँ होती रहतीं
कितने जुर्म हमारे होते
बँटती समझ बराबर सबको
ऐसे न बँटवारे होते
रार नहीं तकरार नहीं तो
कितने ख़्वाब सुनहरे होते
काजल से होती यारी तो
नैना ये कजरारे होते
कदम मिला कर हमसे चलते
तुम भी अपने प्यारे होते
मिर्च मसाले न होते तो
ऐसे न चटखारे होते
पैदा न मोबाइल होता
दुखी खूब हरकारे होते
सौदे न सरकारी होते
कैसे नोट डकारे होते...
एस ऍम फरीद "भारती"
कितने हाथ हमारे होते
दूर पहुँच से होते जो भी
बिल्कुल पास हमारे होते
माफ़ सज़ाएँ होती रहतीं
कितने जुर्म हमारे होते
बँटती समझ बराबर सबको
ऐसे न बँटवारे होते
रार नहीं तकरार नहीं तो
कितने ख़्वाब सुनहरे होते
काजल से होती यारी तो
नैना ये कजरारे होते
कदम मिला कर हमसे चलते
तुम भी अपने प्यारे होते
मिर्च मसाले न होते तो
ऐसे न चटखारे होते
पैदा न मोबाइल होता
दुखी खूब हरकारे होते
सौदे न सरकारी होते
कैसे नोट डकारे होते...
एस ऍम फरीद "भारती"
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