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Thursday 19 April 2012

मुद्दत के बाद मोम की मूरत- एस ऍम फरीद "भारती"

मुद्दत के बाद मोम की मूरत में ढल गया
 मेरी वफ़ा की आँच में पत्थर पिघल गया

उसका सरापा हुस्न जो देखा तो यों लगा

जैसे अमा की रात में चंदा निकल गया

ख़ुशबू जो उसके हुस्न की गुज़री क़रीब से
मन भी मचल गया मेरा तन भी मचल गया

गुज़रे हुए लम्हात को भुलूँ तो किस तरह
यादों में रात ढल गई सूरज निकल गया

मIना उसी के नूर से रोशन है ज़िंदगी
उसका तसव्वुर ही मेरे शेरों में ढल गया...


एस ऍम फरीद "भारती"

1 comment:

आपका बहुत बहुत शुक्रिया जल्द ही हम आपको इसका जवाब देंगे ...