वो वफागर न हुआ इस में उस का दोष ही क्या,
मेरे ही प्यार में कुछ नुक्स पाए जाते हैं,,
मैं जिसे अपना कहूँ उसकी वफादारी को,
मेरी चाहत के जरासीम खा जाते हैं,,
जाने अहबाब थे मेरे वो या कि चूहे थे,
इधर हम डूबते हैं, उधर वो भागे जाते हैं,,
आप भी आइये सर फोड़ लीजिये अपना,
बुतों का शहर है, याँ पत्थर ही पाए जाते हैं,,
हम वो मेंहदी हैं , जिन नाखूनों के सर चढ़ जायें,
कट भी जायें तो मेरा रंग न छुड़ा पाते हैं,,
आज बस इतना ही, कुछ और भी है काम ज़रा,
रोज़-ओ-अय्याम की गर्दिश है, अभी आते हैं ...
**जरासीम= रोगाणु, बैक्टीरिया ** अहबाब= दोस्त,
** रोज़-ओ-अय्याम की गर्दिश= दिन और रात का चक्र.
ग़ालिब थे
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