कभी तलवारों से लड़ाई नहीं लड़ी जाती है "फरीद",
मैदान ऐ जंग मैं जाने के लिए जिगर चाहिए ...
मैदान ऐ जंग मैं जब नाम ऐ मुहम्मद लिया जाता था,
"फरीद" रूह तक कांप जाती थी दुश्मन ऐ मैदान की ... न्यू
हुकुमे मुहम्मद की खातिर जो चल दिए टूटी तलवार लेकर,
नाम "ज़ैद" तो था फ़िक्र थी फरमाने मुहम्मद की "फरीद"... न्यू
कभी वोह हमको दीवाना कहता है कभी खुद ही बना देता है,
अजीब दोस्त है हमारा "फरीद" हर रूज़ नया नाम बता देता है ... नया
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत शुक्रिया जल्द ही हम आपको इसका जवाब देंगे ...