आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए नाशाद आया
कितने भूले हुए ज़ख़्मों का पता याद आया
आप के लब पे कभी अपना भी नाम आया था
शोख नज़रों से मुहब्बत का सलाम आया था
उम्र भर साथ निभाने का पयाम आया था
आपको देख के वह अहद-ए-वफ़ा याद आया
रुह में जल उठे बजती हुई यादों के दिए
कैसे दीवाने थे हम आपको पाने के लिए
यूँ तो कुछ कम नहीं जो आपने एहसान किए
पर जो माँगे से न पाया वो सिला याद आया...
लेखक 'फरीद भारती'
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आपका बहुत बहुत शुक्रिया जल्द ही हम आपको इसका जवाब देंगे ...