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Saturday, 21 January 2012


तेरे ग़म के पनाह में अर्से बिते
तेरे ग़म के पनाह में अर्से बिते,
आरजू के गुनाह में अर्से बिते,,
अब तो तन्हाई है  बेरहम दिल की,

सपनों को दारगाह में अर्से  बीते  ,,

कुछ तो  बीते  हुए वक्त का तकाज़ा है,
कुछ तो राहों ने शौकया नवाजा है,,

जब से सपनों में तेरा आना छुटा,
नींद से मुलाक़ात के अर्से  बीते ,,

बिते हुए लम्हों से शिकवा नहीं,
मिल जाए थोड़ा चैन ये रवायत नही,,

मेरे टुकडो में अपनी खुशी ढूँढो ज़रा,
बिखरे इन्हे "फरीद" फुटपाथ पे अर्से बीते ...

1 comment:

आपका बहुत बहुत शुक्रिया जल्द ही हम आपको इसका जवाब देंगे ...