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Saturday 21 January 2012


न बादल होता न बरसात होती
न बादल होता न बरसात होती,
दिन अगर न होता न रात होती।

गम ही न होता अगर जिंदगी में,
बहार से भी न मुलाक़ात होती।

नए लोगों की जो आमद न होती,
रंगों से कैसे फिर मुलाक़ात होती।

लफ्ज़ ख़ूबसूरत लिखने न आते,
मुहब्बत में हमें फिर मात होती।

अच्छा है रही न कोई भी तलब,
मिटती हुई उमीदें-हालात होती।

खुशबु-ऐ-हिना उड़कर आई थी,
मिल जाती कुछ और बात होती।

जुर्म जिसका था सजा उसे मिलती,
हुज्ज़त की न कोई बात होती।

अंगड़ाइयों से बदन टूट जाता "फरीद",
बरसात की अगर यह रात होती।

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