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Saturday, 21 January 2012


नश्तर हमें ही फिर भी चुभाओगे कब तलक
ये आप जानो रिश्ते बनाओगे कब तलक,
हमको ये देखना है निभाओगे कब तलक।


मुझपर करोगे वार तो हो जाओगे घायल,
साया हूं आपका मैं मिटाओगे कब तलक।


दुश्मन अगर हैं आप तो दिखावा भी छोड़ दो,
दिल में ज़हर है हाथ मिलाओगे कब तलक।


जिसने तुम्हारे जे़हन में बारूद भरी है,
राहों में उसकी पलकें बिछाओगे कब तलक।


तुम खु़द तो सबके वास्ते करके दिखाओ कुछ,
फ़िर्क़ापरस्त दल से डराओगे कब तलक।


पत्थर थे आप हमने अता की हैं धड़कनें,
नश्तर हमें ही फिर भी चुभाओगे कब तलक।


सर पर लटक रही है जो तलवार देखलूं,
पुरखों के ताजो तख़्त दिखाओगे कब तलक।


टूटे हुए हो अब तो बिखरने की देर है,
हर राज़ अपने दिल में छिपाओगे कब तलक।।


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