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Saturday 21 January 2012



शाम होते ही शरारतों की याद आती है
शाम होते ही शरारतों की याद आती है,
चमकती तेरी आँखों की याद आती है।


वक़्त वह जब एक दूसरे को देखा था,
महकते फूल से लम्हों की याद आती है।

सर-ता-पा तुझे आज तक भूला नहीं हूँ,
मिट्टी से सने तेरे पावों की याद आती है।

मुहब्बत की फिजाओं में उस सफ़र की,
खाई कौलों कसमों की याद आती है।

उन दिनों मैं मर मर कर जिया था,
उस उम्र के कई जन्मों की याद आती है।

चिलचिलाती जेठ की तपती दुपहरी में,
साया देते तेरे गेसूओं की याद आती है।

"फरीद" कहीं रहो तुम रहो खैरियत के साथ,
दिल को इन्ही दुआओं की याद आती ...

1 comment:

आपका बहुत बहुत शुक्रिया जल्द ही हम आपको इसका जवाब देंगे ...