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Saturday, 21 January 2012


पेड़ गिरा तो उसने दिवार ढहा दी
पेड़ गिरा तो उसने दिवार ढहा दी
फिर एक मुश्किल और बढ़ा दी।


पहले ही मसअले क्या कम थे
उन्होंने एक नई कहानी सुना दी।

फूल कहीं थे सेज कहीं बिछी थी
मिलन की कैसी यह रात सजा दी।

क्या खूब है जमाने का दस्तूर भी
जितना क़द बढ़ा बातें उतनी बढ़ा दी।

चीखते फिर रहे हैं अब साये धूप में
क्यों सूरज को सारी हकीकत बता दी।

तन्हाई पर मेरी हँसता है बहुत शोर
किसने उसे मेरे घर की राह दिखा दी।

तुम्हे पता था बिजली अभी न आएगी
जलती शमां फिर भी यकदम बुझा दी।

जख्म बिछ गये हैं जिस्म पर मेरे
जाने तुमने मुझे यह कैसी दुआ दी।

मैंने तो बात तुमको ही बताई थी
तुमने अपनी हथेली सबको दिखा दी।

वो ज़हर उगल रहे थे मुंह से अपने
तुमने उनकी बातें मखमली बता दी।

नींद जब आँखों से ही दूर हो गई
तुमने भी जागते रहने की दवा दी।

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