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Saturday 21 January 2012


शीत लू वर्षा को भी क्यों मुपफ़लिसी से बैर है
अब कहां पहले सी खुश्बू है सुमन बदला हुआ,
है हवा बदली हुयी रंग ए चमन बदला हुआ।

ताकतो के जुल्म का तो सिलसिला थमता नहीं,
लाख बदली हो ज़मीं और ये गगन बदला हुआ।

हो रही है ताजपोशी माफियाओं की यहां,
रहनुमाओं का हमारे है वचन बदला हुआ।

शीत लू वर्षा को भी क्यों मुफलिसी से बैर है,
मरने वाले हैं वही सब बस कफन बदला हुआ।

कौन सी किससे जा मिलेगा रहबरों का क्या पता,
सांप हैं सब एक जैसे सिर्फ फन बदला हुआ।

बात की दुनिया भर की देखो अब ग़ज़ल कहने लगी,
शायरी का लग रहा है आज फ़न बदला हुआ।

भूख लाचारी जहां हो आम इंसां का मयार,
कैसे बोले कोई तब तक है वतन बदला हुआ।

अपनी इज़्ज़त हाथ में होती है अपने सोचलो,
आज तहज़ीब का भी है चलन बदला हुआ।।

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