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Saturday, 21 January 2012


इतनी बेरूखी कभी अच्छी नहीं
इतनी बेरूखी कभी अच्छी नहीं,
ज्यादा दीवानगी भी अच्छी नहीं।

फासला जरूरी चाहिए बीच में,
इतनी दिल्लगी भी अच्छी नहीं।

मेहमान नवाजी अच्छी लगती है,
सदा बेत्क्लुफ्फी भी अच्छी नहीं।

कहते हैं प्यार अँधा होता है मगर,
आँखों की बेलिहाज़ी भी अच्छी नहीं।

हर बात का एक दस्तूर होता है,
प्यार में खुदगर्जी भी अच्छी नहीं।

वायदे तो "फरीद" खुबसूरत होते हैं बहुत,
वायदा-खिलाफी भी अच्छी नहीं।

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