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Sunday 29 April 2012

ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त[1]ही सही - साहिर लुधियानवी


ताज
ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त[1]ही सही 
तुझको इस वादी-ए-रंगीं[2]से अक़ीदत[3] ही सही

मेरी महबूब[4] कहीं और मिला कर मुझ से! 

बज़्म-ए-शाही[5] में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी 
सब्त[6] जिस राह में हों सतवत-ए-शाही[7] के निशाँ 
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी 

मेरी महबूब! पस-ए-पर्दा-ए-तशहीर-ए-वफ़ा[8] 

तू ने सतवत[9] के निशानों को तो देखा होता 
मुर्दा शाहों के मक़ाबिर[10] से बहलने वाली 
अपने तारीक[11] मकानों को तो देखा होता

अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है 
कौन कहता है कि सादिक़[12] न थे जज़्बे[13] उनके 
लेकिन उन के लिये तशहीर[14] का सामान नहीं 
क्योंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस[15] थे 

ये इमारात-ओ-मक़ाबिर,[16] ये फ़सीलें,[17]ये हिसार[18]
मुतल-क़ुलहुक्म[19] शहंशाहों की अज़मत के सुतूँ[20] 
सीना-ए-दहर[21]के नासूर हैं ,कुहना[22] नासूर
जज़्ब है[23] जिसमें तेरे और मेरे अजदाद[24] का ख़ूँ 

मेरी महबूब ! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी 
जिनकी सन्नाई[25] ने बख़्शी[26] है इसे शक्ल-ए-जमील[27] 
उन के प्यारों के मक़ाबिर[28] रहे बेनाम-ओ-नमूद[29] 
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील[30] 

ये चमनज़ार[31] ये जमुना का किनारा ये महल 
ये मुनक़्क़श [32]दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़ 

इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर 
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़

मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से! 
शब्दार्थ:

1 प्रेम का द्योतक, 2 रमणीय स्थान, 3 श्रद्धा, 4 प्रेयसी, 5 बादशाहों के दरबार, 6 अंकित, 7 राजसी वैभव, 8 प्रेम, 9 के विज्ञापन के परदे के पीछे, 10  राजसी वैभव, 11 मक़बरों, 12 अंधेरे, 13 पवित्र, 14 भावनायें, 15 विज्ञापन, 16 निर्धन, 17 भवन और मक़बरे, 18 परिकोटे, 19 क़िले, 20 आदेश देने में स्वतन्त्र, 21 वैभव के खम्भे, 22 संसार के वक्षस्थल के, 23 पुराने, 24 समाया हुआ है, 25 पूर्वजों, 26 कारीगरी, 27 प्रदान की है, 28 सुन्दर रूप,
29 मक़बरे, 30 अनाम और बिना निशान के, 31 मोमबती, 32 उद्यान, 33 नक़्क़ाशी किए हुए...

लेखक 'फरीद भारती' 

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