दूर तक जिसकी नज़र चुपचाप जाती ही नहीं
हम समझते हैं समीक्षा उसको आती ही नहीं
आपका पिंजरा है दाना आपका तो क्या हुआ
आपके कहने से चिड़िया गुनगुनाती ही नहीं
भावना खो जाती है शब्दों के जंगल में जहाँ
शायरी की रोशनी उस ओर जाती ही नहीं
आप कहते हैं वफ़ा करते नहीं हैं इसलिए
जिस नज़र में है वफ़ा वह रास आती ही नहीं
झाड़ियों में आप उलझे तो उलझकर रह गए
आप तक बादे सबा जाकर भी जाती ही नहीं
शेर की दोस्तों अभी भी शेरीयत है ज़िंदगी
इसके बिना कोई ग़ज़ल तो गुदगुदाती ही नहीं...
एस ऍम फरीद "भारती"
हम समझते हैं समीक्षा उसको आती ही नहीं
आपका पिंजरा है दाना आपका तो क्या हुआ
आपके कहने से चिड़िया गुनगुनाती ही नहीं
भावना खो जाती है शब्दों के जंगल में जहाँ
शायरी की रोशनी उस ओर जाती ही नहीं
आप कहते हैं वफ़ा करते नहीं हैं इसलिए
जिस नज़र में है वफ़ा वह रास आती ही नहीं
झाड़ियों में आप उलझे तो उलझकर रह गए
आप तक बादे सबा जाकर भी जाती ही नहीं
शेर की दोस्तों अभी भी शेरीयत है ज़िंदगी
इसके बिना कोई ग़ज़ल तो गुदगुदाती ही नहीं...
एस ऍम फरीद "भारती"
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