
हीरे जैसा कीमती पत्थर है वो मेरे लिए
हर दफा उठकर झुकी उसकी नज़र तो यों लगा
प्यार के पैग़ाम का मंज़र है वो मेरे लिए
आईना उसने मेरा दरका दिया तो क्या हुआ
चाहतों का खूबसूरत घर है वो मेरे लिए
एक लम्हे के लिए खुदको भुलाया तो लगा
इस अंधेरी रात में रहबर है वो मेरे लिए
उसने तो मुझको जलाने की कसम खाई मगर
चिलचिलाती धूप में तरुवर है वो मेरे लिए
जिस्म छलनी कर दिया लेकिन मुझे लगता रहा
ज़िंदगी भर की दुआ का दर है वो मेरे लिए...
एस ऍम फरीद "भारती"
http://shairo-shairy.blogspot.in/2012/04/blog-post_3230.html
ReplyDeletehttp://amreshsrivastava.blogspot.in/2011/10/blog-post_13.html
उपर्युक्त दोनों लिंक्स में शब्द एक से हैं .... किसे सच मान लूँ .... किसे झूठ मान लूँ ....
ऐसा क्यूँ होता है .... ? इतनी बेमुरव्वत लोग क्यूँ होते हैं .... ?
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in/2013/06/blog-post_11.html
बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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