Dilshad Saifi
तमाम सेह्न-ए-चमन बिजलियों की ज़द में है
मगर हमें तो यहीं आशियाँ बनाना है
अब मैं शायद नज़्रे-तूफ़ाँ हो गया
लोग साहिल पर नज़र आते नहीं
यक़ीं ज़रा भी नहीं अपने ज़ोर-ए-बाज़ू पर
हथेलियों में मुक़द्दर तलाश करता है
Dilshad Saifi
झूठ का लेकर सहारा जो उबर जाऊँगा
मौत आने से नहीं शर्म से मर जाऊँगा
सख़्त जाँ हो गया तूफानों से टकराने पर
लोग समझते थे कि तिनकों सा बिखर जाऊँगा
है यक़ीं लौट के आऊँगा मैं फ़तेह बनकर
सर हथेली पे लिए अपना जिधर जाऊँगा
सिर्फ़ ज़र्रा हूँ अगर देखिए मेरी जानिब
सारी दुनिया में मगर रोशनी कर जाऊँगा
कुछ निशानात हैं राहों में तो जारी है सफ़र
ये निशानात न होंगे तो किधर जाऊँगा
जब तलक मुझमें रवानी है तो दरिया हूँ 'अज़ीज़'
मैं समंदर में जो उतरूँगा तो मर जाऊँगा
"Dilshad Saifi"
Dilshad Saifi
हिज्र की सब का सहारा भी नहीं
अब फलक पर कोई तारा भी नहीं
बस तेरी याद ही काफी है मुझे
और कुछ दिल को गवारा भी नहीं
जिसको देखूँ तो मैं देखा ही करूँ
ऐसा अब कोई नजारा भी नहीं
डूबने वाला अजब था कि मुझे
डूबते वक्त पुकारा भी नहीं
कश्ती ए इश्क वहाँ है मेरी
दूर तक कोई किनारा भी नहीं
दो घड़ी उसने मेरे पास आकर
बारे गम सर से उतारा भी नहीं
कुछ तो है बात कि उसने साबिर
आज जुल्फों को सँवारा भी नहीं।
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