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Thursday 8 March 2012

Suhail Kakorvi- बहुत ही प्यार से मिलता है वो


Suhail Kakorvi
‎*** ग़ज़ल बनाम होली ***
बहुत ही प्यार से मिलता है वो जाने वफ़ा होली, 
बनी जाती है मतवाली मोहब्बत की अदा होली.


ख़ुशी के ज़ाविये ऐसे कि सारे फर्क मिटते हैं,
जहाने रूह में वो खेलता है दिलरुबा होली.

जलीं हैं नफरतें तो आग से उल्फत की गुल उभरे, 
तेरा एजाज़ है ये ए मोहब्बतआशना होली.

है झुरमुट रंग का लेकिन उभरता है वही पैकर,
ये हासिल हो गया तो अब तमन्ना और क्या होली.

वो अंगारों को रंगों में डिबोकर मुस्कुराता है,
ये कैसा खेल है तू ही ज़रा मुझको बता होली.

जलाकर खुद को कर दी रौशनी मेरे तसव्वुर में,
मिला चिंगारियों के रक्स से उसका पता होली.

गुलाल अपने लगता है अबीर अपने लगता है,
मनाता है इसी सूरत वो यार-ए-खुद्नुमा होली. 

ये तेरे हुस्न के जादू का है सारा असर उस पर, 
बुत-ए-रंगीन तेरे साथ ही सारी फिज़ा हो-ली.

सुरूर उस पर है मौसम का 'सुहैल' अपनी तो बन आई,
बता कर मुस्कुराई उस को मेरा मुददआ होली.
_______________________________सुहैल काकोरवी

ज़ाविये= दृष्टिकोण, पैकर= आकृति, तसव्वुर= कल्पना, एजाज़= जादू, मोहब्बत आशना= मोहब्बत को समझने वाला, रक्स= नृत्य, खुद्नुमा= अहंकारी, सुरूर= नशा, मुददआ= तात्पर्य.

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