Nagendra Anuj
आज की ग़ज़ल
जो तुझको पुचकारेगा।
गर्दन वही उतारेगा।
मत ज़मीर का सौदा कर,
मन तुझको धिक्कारेगा।
सबके बिगइ़े चाल-चलन,
किसको-कौन सुधारेगा।
जीत गया तो इतरा मत,
तू भी इकदिन हारेगा।
दर्पन अनुज बचाए रख,
वर्ना कौन सँवारेगा।
नागेन्द्र अनुज
Nagendra Anuj
भैजा किए हम उसको भी पैग़ामे-मुहब्बत।
मुझपर जो लगाता रहा इल्ज़ामे-मुहब्बत।
आगा़ज़े मुहब्बत के हैं हक़दार वही लोग,
सोचा जो नहीं करते हैं अंजामे-मुहब्बत।
दुनिया की किसी मय में उसे लुत्फ़ न आया,
होठों से लगा जिसके कभी जामे-मुहब्बत।
हर सुब्ह सुहानी है मुहब्बत के नशे में,
पुरलुत्फ़ हुआ करती है हर शामे-मुहब्बत।
हर शख़्स की ऑखों से हवस झॉंक रही है,
दुनिया से न मिट जाय कहीं नामे-मुहब्बत।
नागेन्द्र अनुज
Nagendra Anuj
भैजा किए हम उसको भी पैग़ामे-मुहब्बत।
मुझपर जो लगाता रहा इल्ज़ामे-मुहब्बत।
आगा़ज़े मुहब्बत के हैं हक़दार वही लोग,
सोचा जो नहीं करते हैं अंजामे-मुहब्बत।
दुनिया की किसी मय में उसे लुत्फ़ न आया,
होठों से लगा जिसके कभी जामे-मुहब्बत।
हर सुब्ह सुहानी है मुहब्बत के नशे में,
पुरलुत्फ़ हुआ करती है हर शामे-मुहब्बत।
हर शख़्स की ऑखों से हवस झॉंक रही है,
दुनिया से न मिट जाय कहीं नामे-मुहब्बत।
नागेन्द्र अनुज
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